आज फिर जब तुमसे सामना हुआ : नेमिचन्द्र जैन
कितनें दिनों बाद आज फिर जबतुमसे सामना हुआउस भीड़ में अकस्मात् ,जहाँ इसकी कोई आशंका न थी,तो मैं कैसा अचकचा गयारँगे हाथ पकड़े गये चोर की भाँति ।तुरत अपनी घोर अकृतज्ञता काभान हुआलज्जा से मस्तक झुक गया अपनें...
View Articleकम्पनी बाग़ : कीर्ति चौधरी
लतरें हैं, ख़ुशबू है,पौधे हैं, फूल हैं।ऊँचे दरख़्त कहीं, झाड़ कहीं ,शूल हैं।लान में उगायी तरतीबवार घास है।इधर-उधर बाक़ी सब मौसम उदास है।आधी से ज़्यादा तो ज़मीन बेकार है।उगे की सुरक्षा ही माली को भार है।लोहे...
View Articleग्राम श्री : सुमित्रानंदन पंत
फैली खेतों में दूर तलकमख़मल की कोमल हरियाली,लिपटीं जिस से रवि की किरणेंचाँदी की-सी उजली जाली !रोमाँचित-सी लगती वसुधाआयी जौ-गेहूँ में बालीअरहर सनई की सोने कीकिंकिणियाँ हैं शोभाशालीउड़ती भीनी तैलाक्त...
View Articleअकेले किस के प्राण : शमशेरबहादुर सिंह
(१)अरुण प्रान्त में सुन्दर उज्ज्वलजिस का सूना निश्चल तारा,एकाकीपन जिस का संबल,अमा दिवस ! वह किस का प्यारा ?(२)आज अकेले किस के प्राण ?मेरे कवि के! मेरे कवि के !जिस नें जीवन के सम्मानफूँक दिये आँगन में...
View Articleकविता के द्वारा हस्त्तक्षेप : धूमिल
जब मै अपनें ही जैसे किसी आदमी से बात करता हूँ,साक्षर है पर समझदार नहीं है । समझ है लेकिनसाहस नहीं है । वह अपने खिलाफ चलाने वालीसाजिश का विरोध खुल कर नही कर पाता ।और इस कमजोरी को मैं जानता हूँ । लेकिन...
View Articleआशी: - त्रिलोचन
पृथ्वी सेदूब की कलाएँ लोचारऊषा सेहल्दिया तिलक लोऔरअपनें हाथों मेंअक्षत लोपृथ्वी आकाशजहाँ कहींतुम्हें जाना होबढ़ोबढ़ो('अरधान' से )त्रिलोचन पर एक लेख
View Articleनव दृष्टि : सुमित्रानंदन पंत,( जन्म-२० मई,१९००)
खुल गये छन्द के बन्ध ,प्रास के रजत पाश,अब गीत मुक्त,औ’ युग-वाणी बहती अयास !बन गये कलात्मक भावजगत के रूप-नाम,जीवन-संघर्षण देता सुख,लगता ललाम!सुन्दर, शिव,सत्यकला के कल्पित माप-मानबन गये स्थूल,जग-जीवन से...
View Articleक्यों कि तुम हो : अज्ञेय
मेघों को सहसा चिकनी अरुणाई छू जाती हैतारागण से एक शान्ति-सी छन-छन कर आती हैक्यों कि तुम हो।फुटकी सी लहरिल उड़ानशाश्वत के मूक गान की स्वर लिपि-सी संज्ञा के पट पर अँक जाती हैजुगनू की छोटी-सी द्युति में...
View Articleकरघा : रामधारी सिंह ’दिनकर’
हर ज़िन्दगी कहीं न कहींदूसरी ज़िन्दगी से टकराती है।हर ज़िन्दगी किसी न किसीज़िन्दगी से मिल कर एक हो जाती है ।ज़िन्दगी ज़िन्दगी सेइतनी जगहों पर मिलती हैकि हम कुछ समझ नहीं पातेऔर कह बैठते हैं यह भारी झमेला...
View Articleताजमहल की छाया में : अज्ञेय
मुझ में यह सामर्थ्य नहीं है मैं कविता कर पाऊँ,या कूँची में रंगों ही का स्वर्ण-वितान बनाऊँ ।साधन इतनें नहीं कि पत्थर के प्रसाद खड़े कर-तेरा, अपना और प्यार का नाम अमर कर जाऊँ।पर वह क्या कम कवि है जो कविता...
View Articleपर्वतारोही : रामधारी सिंह दिनकर
मैं पर्वतारोही हूँ।शिखर अभी दूर है।और मेरी साँस फूलनें लगी है।मुड़ कर देखता हूँकि मैनें जो निशान बनाये थे,वे हैं या नहीं।मैंने जो बीज गिराये थे,उनका क्या हुआ?किसान बीजों को मिट्टी में गाड़ करघर जा कर...
View Articleपन्द्रह अगस्त उन्नीस सौ सैंतालीस : सुमित्रानंदन पंत
चिरप्रणम्ययहपुष्यअहन, जयगाओसुरगण,आजअवतरितहुईचेतनाभूपरनूतन !नवभारत, फिरचीरयुगोंकातिमिर-आवरण,तरुणअरुण-साउदितहुआपरिदीप्तकरभुवन !सभ्यहुआअबविश्व, सभ्यधरणीकाजीवन,आजखुलेभारतकेसंगभूकेजड़-बंधन...
View Articleजयशंकर प्रसाद
सबजीवनबीताजाताहैधूपछाँहकेखेलसदॄशसबजीवनबीताजाताहैसमयभागताहैप्रतिक्षणमें,नव-अतीतकेतुषार-कणमें,हमेंलगाकरभविष्य-रणमें,आपकहाँछिपजाताहैसबजीवनबीताजाताहैबुल्ले, नहर,...
View Articleसूखे पीले पत्तों ने कहा - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
तेज़ी से जाते हुई कार के पीछेपथ पर गिरे पड़ेनिर्जीव सूखे पीले पत्तों ने भीकुछ दूर दौड़ कर गर्व से कहा----’हम में भी गति है,सुनो, हम में भी जीवन है,रुको-रुको हम भीसाथ चलते हैंहम भी प्रगतिशील हैं।’लेकिन उन...
View Articleरुबाई : शमशेरबहादुर सिंह
हम अपने ख़्याल को सनम समझे थेअपने को ख़्याल से भी कम समझे थे’होना था’- समझना न था कुछ भी ’शमशेर’होना भी कहाँ था वो जो हम समझे थे।’दूसरा सप्तक’ से
View Articleएक भावना : हरिनारायण व्यास
पुरानी मान्यताओं, पुराने शब्दों, पुरानी कहावतों को नये अर्थ से विभूषित कर के कविता ,में प्रयोग करने से पाठक की अनुभूतियों को छूने में सहायता मिलती है।हरिनारायण व्यास**************इस पुरानी ज़िन्दगी की...
View Articleजो चलते हैं : नवतेज भारती
यदि मैं चलता चलता रुक जाऊंतब मेरे पांव ,उनको दे देना, जो चलते हैंआंखे उनको, जो देखते हैंदिल उनको, जो प्यार करते हैं.’पंजाबी की श्रेष्ट प्रेम-कविताएं’ से
View Articleशब्द रोशनी वाले : नवतेज भारती
जिस शब्द में से प्रकाश नही फूटताउसको काग़ज़ पर मत रखकोरा सफ़ेद काग़ज़काले अक्षरों से ज़्यादा मोल का होता है.’पंजाबीकी श्रेष्ट प्रेम-कविताएं’ से
View Articleउदास वक़्तों में : नवतेज भारती
उदास वक़्तों में भी, जुगनू लौ करते हैंसितारे टिमटिमाते हैंऔर कवि कविता लिखते हैंउदास वक़्तों में भीघास के तृण उगते हैंपक्षी गाते और फूल खिलते हैंउदास समय में भीलोग सपने लेते हैंदरिया बहते हैं और सूर्य...
View Articleसायंकाल : रधुवीर सहाय
"...बहरहाल, इस तरह की कोशिशें विचार वस्तु के दिल और दिमाग़ पर उतरनें के तरीक़े पर निर्भर रहेंगी और ज़रूरी है कि हम अपनी अनुभूति को उसी प्रकार सुधारें, ताकि कविता भी वैसी ही जानदार हो सके जैसी कि वे...
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